प्रारम्भिक काल से ही कभी धर्म और संस्कृति तो कभी नस्ल या भाषावाद के क्षेत्र में किया गया भेदभाव हर समाज की एक मुख्य समस्या रहा है ! किसी न किसी रूप में प्रत्येक व्यक्ति को इसका सामना जीवन में कही न कही या तो करना ही पड़ा है ! धर्म निरपेक्ष देश होने के बावजूद भारत भी इससे अछूता नहीं रह गया है ! अत; यह भी आरक्षण के आपवाद से बच नहीं पाया है ! संविधान के माध्यम से पिछड़े और शोषित लोगो को कुछ विशेष अधिकार भी प्रदान किये गए ! किन्तु सवाल यह है की क्या यह निति इन लोगो के लिए लाभकारी सिद्ध हुई है.
प्रमुख कारण:-
आजादी मिलने से पूर्व में ही समाज के कुछ वर्ग सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक स्तर पर पिछडे हुए थे इनमे अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति वाले लोगो की संख्या अधिकतम थी ! सविधान की धारा 46 के तहत सरकार को इनके कल्याण के कदम तुरंत प्रभाव से उठाने के निर्देश मिले ! और धारा 16 के तहत राज्य को इनके कल्याण करने सम्बन्धी विशेष अधिकार भी दिए गए ! इनमे प्रमुख थे-धर्म, जाति, नस्ल, और जन्म स्थान का भेदभाव नहीं हो, अस्पर्श्यता अपराध घोषित हो और शैक्षणिक तौर पर भी इनका उत्थान किया जाये ! किन्तु आरम्भ में यह व्यवस्था केवल शुरूआती 10 वर्षो के लिए ही अस्तित्व में थी और नौकरी के आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान में स्पष्ट था की पात्र व्यक्ति को नौकरी दिए जाने से पूर्व उसकी प्रशासनिक कुशलता का पहलु भी ध्यान में रखा जाये ! इससे समाज के सभी वर्गो में विकास की समान धारा बहे तथा देश की शासन व्यवस्था में भी प्रत्येक वर्ग का सहयोग हो ! क्योंकि शिक्षा का महत्व समझने के बाद ही लोग अपने वोट के महत्व को, शासन-व्यवस्था को समझेंगे ! इसी क्रम में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति के आयोग की भी प्रथक स्थापना की गयी थी ! और 1999 से ही यह व्यवस्था पिछडो के हित में लागु कर दी गयी.
आरक्षण के विपरीत प्रभाव :-
किन्तु वर्तमान परीप्रेक्ष्य में आरक्षण के कुछ विपरीत परिणाम भी सामने आये है ! विगत कुछ वर्षो में यह स्थिती अत्यंत ही गंभीर हो गयी है ! आरक्षण की वास्तविकता यह है की कई ग्रामीण क्षेत्रो में तो आज भी इस व्यवस्था की समझ ही नहीं है और इसका वास्तविक स्वरूप उन ग्रामीण क्षेत्रो में पहुच ही नहीं पाया है जिनको वास्तव में इनकी जरूरत है ! इनको आज भी प्राथमिक शिक्षा और न्यूनतम रोजगार भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है इसलिए ये आर्थिक रूप से भी और पिछड़ते जा रहे है ! देश की राजनैतिक पार्टिया तो आरक्षण को चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाकर आम जनमानस को लगातार गुमराह करती रहती है.
इसके विपरीत प्रभावों से आरक्षण से रहित अन्य छात्र वर्ग मानसिक पीड़ा भोगता है तथा प्रवेश से लेकर अंको तक में उसके साथ भेदभाव होता है और यह सिलसिला शिक्षा पूरी होने के बाद भी कभी साक्षात्कार के नाम पर तो कभी पदोन्नति के नाम पर अनवरत रूप से चलता ही रहता है ! और इस तरह एक ही क्षेत्र की समान शिक्षा पाकर भी वह छात्र अपने सहपाठी से हर स्तर पर पीछे रह जाता है ! मेडिकल जैसे जीवन खतरे में डालने वाली नौकरी के लिए आरक्षण की व्यवस्था खतरनाक खेल खेलने के समान ही है और कई क्षेत्रो में बाहुबली लोग जिनको की इस सुविधा की आवश्यकता ही नहीं है वो भी राजनितिक दबाव से इसका भरपूर फायदा उठाने लगते है ! और गरीबो की आवश्यकता का यह घटक संपन्न लोगो की सुविधा का एक अवसर बन कर जाता है.
आरक्षण के परिणाम:-
आरक्षण के कई प्रकार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव समाज की मुख्यधारा पर पड़े है ! इससे एक और जरूरतमंद को इसका लाभ मिला है और उसे संविधान के तहत जीवन स्तर को सुधारने और बराबरी से जीने में सफलता मिली है ! ऐसी विशेष व्यवस्था समाज के पिछड़े तबके के लिए वरदान साबित हुई है तो वही दूसरी और कुछ शक्तिशाली लोगो ने आर्थिक और राजनैतिक दबाव से इसका दुरूपयोग भी किया है जिससे इसकी गरिमा को नुक्सान भी हुआ है ! इससे अन्य कुशल प्रतिभाओ को भी और ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है और सबको समान अधिकार देने की इसकी मूल भावना का उपहास भी हो रहा है.