वार्षिकोत्सव - "Annual Function" short essay in hindi?
26 January (Republic Day) in Hindi - गणतंत्र दिवस की जानकारी?
Light Festival "Diwali" in Hindi - दीपावली की जानकारी?
हिन्दू धर्म में लगभग हर रोज कोई न कोई त्यौहार होता है ! इन सब त्योहारों में भी होली, दशहरा और दीपावली मुख्य त्यौहार माने जाते है ! प्रकाश-पर्व अर्थात दीपावली हर वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है ! यह जीवन में प्रकाश फ़ैलाने वाला पर्व भी माना गया है ! इस दिन अमावस्या की वह अँधेरी रात दीपक और मोमबत्ती आदि की रोशनी से जगमगा उठती है ! चारो और का सम्पूर्ण द्र्श्य प्रकाशमान हो जाता है ! यह खेतो में खड़ी धान की फसल के भी तैयार होने का समय होता है इसलिए किसान परिवार और व्यापारी वर्ग भी इसका उत्सुकता से इंतज़ार कर रहे होते है.
दीपावली एक बड़ा त्यौहार है और यही इस पर्व की विशेषता है जो पांच दिन तक चलता है ! इसी वजह से लोगो में लगभग एक सप्ताह तक उमंग और उत्साह बना रहता है ! इसकी शुरुआत धन तेरस नामक पर्व से होती है ! इस दिन घर में कोई न कोई नया बर्तन खरीदने की परंपरा है और इसे शुभ भी माना जाता है ! इसके बाद छोटी दिवाली, फिर मुख्य त्यौहार दिवाली मनाया जाता है ! और इसके अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है ! सबसे अंत में पांचवे दिन भाई-बहिन का त्यौहार भैया-दूज मनाकर त्योहारों की इस लंबी श्रंखला का सुखद समापन होता है.
अन्य कई पर्व के समान दिवाली का भी धार्मिक और पौराणिक महत्व है ! धन की देवी लक्ष्मी समुद्र-मंथन के चौदह रत्नों में से इसी दिन प्रकट हुई थी ! इसके अलावा जैन सम्प्रदाय के मतानुसार यह महावीर स्वामी का महानिर्वाण दिवस भी है ! भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष भगवान श्री राम आज ही के दिन लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे ! उनकी वापसी पर खुश होकर अयोध्यावासियो ने रौशनी से घर सजाये, बंदनवार बनाये, अपने घरो और महलो का रंग-रोगन आदि किया गया ! अपने प्रिय राजा के वापस राज्य में लोटने की ख़ुशी में रात में दीपो की माला बनाकर भी सजाया तभी से यह दीपावली अर्थात दीपो की अवली का त्यौहार दीप-पर्व बन गया और इसी दिन प्रति वर्ष दीपक जलने की नयी परंपरा का चलन शुरू हो गया जो आज तक अनवरत रूप से जारी है.
इतिहास की कुछ अन्य घटनाओ पर नजर डाले तो भी दीपावली का दिन विशेष महत्व का लगता है ! सिक्खों के छट्टे गुरु हरगोविंद सिंह आज ही के दिन मुग़ल शासक ओरंगजेब की कैद से मुक्त हुए थे ! उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का आज ही के दिन सिंहासन-अभिषेक हुआ था ! आचार्य विनोबा भावे जो की सर्वोदयी नेता भी कहे जाते है, उन्होंने भी आज ही के दिन अपनी अंतिम श्वास ली ! प्रसिद्ध वेदांती स्वामी रामतीर्थ और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी आज ही के दिन मोक्ष प्राप्त की थी ! इस प्रकार कई महान हस्तियों का दीपावली के इस दिन से विशेष सम्बन्ध है.
हर किसी को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ अपने इस सबसे बड़े त्यौहार के आगमन की प्रतीक्षा होती है ! इस पर्व के आने से महीने भर पहले से ही लोग अपने घरो की साफ़ सफाई और रंग-रोगन आदि करने लगते है ! भिन्न-भिन्न प्रकार की सजावट भी होने लगती है ! दुकानदार अपनी दुकाने सजाने लगते है और व्यापारी लोग नए बही-खाते शुरू होते है ! बाजारों में रंग-बिरंगी पताका लग जाने से माहौल किसी मेले जैसा हो जाता है ! पटाखों की दूकान पर खूब बिक्री और आतिशबाजी होती है ! खील-बताशे और मिठाइयो की अपार बिक्री होती है ! घरो में भी कई प्रकार की मिठाइयाँ और व्यंजन बनाये जाते है.
संध्या वेला में शुभ मुहूर्त में धन की देवी माँ लक्ष्मी का पूजन किया जाता है ! यह इस त्यौहार का मुख्य दिन भी मन जाता है ! ऐसी मान्यता है की इस रात्रि माता लक्ष्मी का आगमन होता है जिसे सफाई और रौशनी अत्यधिक प्रिय होती है ! इस दिन एकल परिवार भी संयुक्त परिवार बन जाते है और घर के सारे सदस्य इस दिन एक साथ होते है ! इसके बाद लोग एक दुसरे के घरो में जाकर कुशल-क्षेम पूछते है और अन्य बड़ो से आशीर्वाद भी लेते है ! घर-घर में मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है.
सामाजिक परंपरा के साथ ही वैज्ञानिक द्रष्टि से भी इस त्यौहार का अलग ही महत्व है ! गहन साफ़-सफाई और पटाखो की आतिश बाजी से वातावरण में व्याप्त कई प्रकार के कीटाणु समाप्त हो जाते है और समूचा पर्यावरण ही स्वास्थ्यवर्धक हो जाता है.
कुछ लोग मंगल कामना के इस पर्व पर शराब आदि पीते है और जुआ भी खेलते है जो हमारी सामाजिकता और इस प्रकाश पर्व की नकारात्मक छवि दिखाता है ! आतिश बाजी के लिए छोड़े जाने वाले पटाखों आदि से कई प्रकार की दुर्घटना हो जाने से जन धन की हानि हो जाती है ! ऐसी बुराइयों पर अंकुश लगाने की अत्यधिक आवश्यकता है.
Short Essay on "Teachers Day" - शिक्षक दिवस की जानकारी?
हमारी सामाजिक विचारधारा को सही दिशा में क्रियाशील रखने में शिक्षको की अहम भूमिका होती है ! एक शिक्षक न केवल बच्चो को अध्यापन का कार्य करवाता है बल्कि वह देश की भावी नागरिक पीढ़ी को भी तैयार करता है ! शिक्षक राष्ट्र के निर्माण में भागीदार होते है और वे देश की संस्कृति को संरक्षण भी प्रदान करते है ! वे बालको में सुसंस्कार तो डालते ही है साथ ही अज्ञानता रुपी उनका अन्धकार भी दूर करते है ! शिक्षको के इन विशेष कार्यो और अहम भूमिका निभाने के सम्बन्ध में सम्मानित करने का जो जो दिन है उसे ही शिक्षक दिवस कहा जाता है ! हर वर्ष 5 सितम्बर को यह सभी विधालयो और विश्वविधालयो में बहुत ही उत्साह से मनाया जाता है.
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जो की भारत के प्रथम राष्ट्रपति होने के साथ ही एक अच्छे शिक्षक भी थे ! इनके जन्म दिवस पर कई सालो से शिक्षक दिवस मनाया जाता है ! वे संस्कृत के अच्छे शास्त्री, महान शिक्षक और दार्शनिक व्यक्ति थे ! कलकत्ता के दर्शन शास्त्र विश्वविधालय में किंग जोर्ज पंचम के पद पर भी वे लगभग 1 वर्ष तक रहे थे ! लगभग 9 वर्ष तक वह काशी के हिन्दू विश्वविधालय के उप कुलपति रहे और इसी पद पर रहते हुए उन्होंने शिक्षको के लिए सम्मान करने के लिए एक विशेष दिन का विचार रखा ! उनके जीवन का अधिकतम समय भी एक शिक्षक के रूप में व्यतीत हुआ था.
आज भी स्कूल और कॉलेज में शिक्षको के मूल्यांकन और सम्मान के लिए यह एक महत्वपूर्ण दिन है ! इस दिन कई विधालयो में शिक्षण का कार्य छात्र ही देखते है और छात्र-छात्राओ के प्रति विशेष लगाव रखने वाले शिक्षको को इस दिन सम्मानित किया जाता है ! सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन को याद करते हुए उनके विचार रखे जाते है ! विधार्थियों के माध्यम से भी यथाशक्ति अपने शिक्षको को उपहार आदि दिए जाते है ! ज्ञानवर्धक प्रतियोगिताये रखी जाती है ! जीवन में शिक्षक का महत्व बताया जाता है.
शिक्षक ज्ञान की वह ज्योति है जो अन्धकार युक्त कोमल बाल मन को आलोकित कर देती है ! अध्यापक देश के बालको को साक्षर बनाने का काम तो करते ही है साथ ही विवेक का ज्ञान देकर उनका तीसरा नेत्र भी खोलते है जिससे वे बड़े होकर सही-गलत की परख कर सके और अपने निर्णय स्वयं ले सके ! इस तरह शिक्षक किसी भी देश के पूर्ण समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त करते है.
अध्यापक की महत्ता बताते हुए महर्षि अरविन्द अपनी एक पुस्तक में लिखते है की –‘ शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के उपवन के माली है वे इसमें संस्कारों की खाद देते है, अपने श्रम से सींच-सींच कर महाप्राण शक्ति बनाते है ! इटली के एक प्रसिद्ध उपन्यासकार ने कहा है की शिक्षक वह मोमबत्ती है जो स्वयं जलकर दुसरो को प्रकाश देती है ! संत कबीर ने तो शिक्षक को ईश्वर से भी ऊपर दर्जा देते हुए कहा है की-
‘गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागू पाय !बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय !!
भारतीय संस्कृति में तो गुरु से आशीर्वाद लेने की अत्यंत ही प्राचीन परम्परा रही है ! अर्जुन –एकलव्य जैसे अनगिनत शिष्यों से हिंदी साहित्य का इतिहास भरा पड़ा है ! ब्रहस्पति को देवगुरु माना गया है ! गुरुकुल में अध्यन-अध्यापन की व्यवस्था आर्य कालीन सभ्यता से ही प्रचलित है ! प्राचीन काल से ही गुरु-शिष्य परंपरा को महत्व देते हुए हर वर्ष आषाड़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा की विशेष उपमा दी गयी है ! इस दिन गुरु की पूजा और सम्मान को विशेष महत्व दिया गया है.
इस प्रकार शिक्षक को आदर और सम्मान देना और उसकी कीर्ति का प्रचार –प्रसार करना हमारे देश की केंद्र और राज्य सरकार दोनों का ही मुख्य दायित्व होना चाहिए और शिक्षक दिवस इस दायित्व को पूरा करने का अच्छा दिवस है ! इस दिन स्कूल कोलेज के अलावा सरकार की तरफ से भी बड़े-बड़े आयोजन किये जाते है ! साहित्य की द्रष्टि से श्रेष्ठ शिक्षको को चयनित करके सम्मानित किया जाता है ! समय-समय पर भाषा और साहित्य के उत्सवों का आयोजन किया जाता है.
देश की राजधानी दिल्ली में भी केंद्र सरकार द्वारा और दिल्ली नगर निगम, दिल्ली नगर पालिका आदि द्वारा अपने-अपने क्षेत्रो के अधीन आने वाले स्कूलों में उनके श्रेष्ठ अध्यापकों का चयन और सम्मान भी किया जाता है ! और राज्य सरकारे भी अपने स्तर पर समय-समय पर कई शैक्षिक सम्मलेन आदि के माध्यम से शिक्षको और शैक्षणिक विषय पर कई प्रकार के वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि का आयोजन कराती है.
इस प्रकार शिक्षक और शैक्षणिक व्यवस्था का यह क्रम बनाये रखने और शिक्षण के कार्य में और अधिक सार्थकता लाने के लिए शिक्षको का आदर-सम्मान करना, उन्हें समय-समय पर पुरस्कृत करना और उनका उत्साह वर्धन करना अत्यंत ही आवश्यक है और इसी क्रम में शिक्षक दिवस की तभी उपयोगिता भी है.
Introduction of "HOLI" - रंगों का त्यौहार : होली?
प्राचीन काल से ही त्यौहार भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े वाहक और संरक्षक भी बने हुए है ! त्यौहार हमारे जीवन की नीरस एकरसता को तोड़कर नयी उमंग और हर्ष का संचार करते है ! हमारे परंपरागत त्योहारों में रंगों का त्यौहार होली भी एक महत्वपूर्ण पर्व माना गया है ! इस त्यौहार में संयोग से मिलाप होने की सम्भावना अन्य पर्व की अपेक्षा अधिक होती है और मिल-जुलकर रंग आदि लगाने से यह हमारी समानता की भावना को भी विस्तार प्रदान करता है और समरसता बढ़ाता है.
हमारे देश में शायद ही ऐसी कोई तिथि है जो किसी न किसी पर्व से जुडी हुई न हो ! भारत में मनाये जाने वाले हर एक पर्व के पीछे कोई न कोई धार्मिक और सामाजिक मान्यता अवश्य ही जुडी रहती है ! होली का पर्व भी एक पौराणिक कथा से जुडा हुआ है ! ऐसी मान्यता है की हिरनकश्यप नामक राक्षस ने जब भगवान का अस्तित्व ही नकार कर अपनी प्रजा को स्वयं को ही भगवान मानने पर विवश कर दिया तब अपने ही पुत्र प्रहलाद के भगवत मार्गी हो जाने पर उसने उसे मारने के लिए कई असफल प्रयास किये और अंत में आग से न जल पाने का वरदान प्राप्त अपनी बहिन होलिका को अपने पुत्र प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठ जाने का आदेश दिया किन्तु भगवत कृपा से उस दिन होलिका तो जल गयी और प्रहलाद सकुशल बच गया ! तभी से इस दिन यह पर्व बुराई को आग में जला देने की मान्यता के साथ हर वर्ष मनाया जाने लगा जो आज तक अनवरत रूप से जारी है.
रंगों का यह त्यौहार अपार हर्ष और प्रसन्नता का पर्व है ! ब्रज क्षेत्र में तो यह त्यौहार एक पखवाड़े तक चलता है ! इससे पूर्व ही मंदिरों में फाग आदि के कार्यक्रम होने लगते है और सारा माहौल ही भक्तिमय हो जाता है ! लोग इस दिन पुराने वैर-भाव भुलाकर एक दुसरे के गले मिलते है और परस्पर रंग-गुलाल आदि लगाते है ! पूर्णिमा को होलिका का दहन सामूहिक रूप से किया जाता है ! इस अवसर पर महिलाए श्रृंगार कर पूजन आदि करती है.
मुग़ल बादशाहों की महफ़िलो और शायरी में भी होली का वर्णन हुआ है जिससे साफ़ प्रतीत होता है की यह पर्व मुस्लिम भी प्रसन्नता पूर्वक मानते है ! मीर, जफ़र और नजर आदि की शायरी में होली की धूम का विस्तृत उल्लेख हुआ है जो हमारी लोक परंपरा और सोहार्द का प्रतीक है ! जहाँगीर ने अपने रोजनामचे तुजुक-ए-जहाँगीरी में लिखा की हिंदी संवत्सर के अंत में यह त्यौहार आता है और इस दिन शाम को आग जलाकर दुसरे दिन उसकी राख आदि एक-दुसरे पर मलते है ! अल-बरुनी ने भी अपनी ग्यारहवी सदी की यात्रा में तात्कालिक होली का वर्णन बहुत ही सम्मान के साथ किया है और लिखा है की अन्य दिनों की अपेक्षा इस दिन विशेष पकवान बनते है और ब्राह्मणों को देने के बाद इनका आदान-प्रदान भी होता है ! मुगलों के अंतिम बादशाह अकबर शाह सानी और बहादुरशाह जफ़र तो खुले दरबार में होली खेलने के लिए अत्यंत प्रसिद्ध थे.
इस पर्व को ऋतुओ से सम्बन्धित भी बताया गया है क्योंकि इन दिनों में मौसम भी सर्दी से गर्मी की और करवट लेने लगता है साथ ही किसानो की मेहनत से तैयार की गयी खेतो में खड़ी फसल भी पक जाती है जिसे देखकर वे ख़ुशी से झूम उठते है ! गेहू की बाली को सामूहिक रूप से होली की आग में भुनकर खाया जाता है और नए अनाज आदि का आदान-प्रदान भी किया जाता है.
दूसरा दिन धुलंडी का होता है जो एक-दुसरे पर रंग डालकर मनाया जाता है ! इस दिन का विशेषकर बच्चो को बेसब्री से इंतज़ार होता है ! सुबह जल्दी ही हाथो में रंग लिए बच्चो और बड़ो की टोलिया अपना-अपना दल बनाकर गल्ली-मुहल्लों में घुमने लगती है ! एक-दुसरे को गले लगाकर, रंग-गुलाल आदि मलकर होली की बधाई दी जाती है ! रंगों से भरे गुब्बारे और पानी की पिचकारियो से रंग डाला जाता है ! ढोल और चंग बजाये जाते है और लोकगीत गाये जाते है.
दोपहर तक रंग लगाने का यह कार्यक्रम समाप्त हो जाता है और लोग नहा-धोकर नए कपडे पहन लेते है ! शाम को लोग एक-दुसरे के घर जाते है और बड़ो से आशीष लेते है ! कई जगह इस दिन शाम को मेला आदि लगता है ! कई क्षेत्रो में इस दिन दंगल-प्रतियोगिता, हास्य समेलन, मुर्ख-जुलुस आदि सामाजिक कार्यक्रम भी रखे जाते है.
होली उत्साह और उमंग का त्यौहार है ! यह हमारे सामाजिक सोहार्द का उत्तम पर्व है किन्तु कुछ लोग इस दिन मदिरा आदि का सेवन कर आपस में ही विवाद कर बैठते है जो हमारे भाईचारे और ज़ीयों और जीने दो के मूल मंत्र पर कलंक के सामान है और इस त्यौहार की गरिमा तथा मूल भावना को ठेस पहुचता है.
What is illiteracy in hindi - निरक्षरता की जानकारी
निरक्षरता के कारण:-
निरक्षरता के प्रभाव:-
उपसंहार:-
जल संकट पर निबंध - (Water problem and solution) in hindi?
पेयजल की आवश्यकता:-
पेयजल-प्रदूषण के कारण और निवारण:-
उपसंहार:-
जनसंख्या के लगातार बढ़ने से और वायुमंडल में तेजी से आ रहे बदलावों के फलस्वरूप आज प्रथ्वी के मीठे पानी के मुख्य जल स्त्रोत सूखने की कगार पर है ! ओधोगिक ईकाईयों में क्लोरिन, अमोनीया जैसे हानिकारक तत्व लगातार घुल रहे है ! ये जल के माध्यम से हमारे शरीर में जाकर श्वसन, चर्म और रक्तचाप सम्बन्धी बीमारी को बढ़ावा दे रहे है ! इसके लिए सूखे और गिले कचरे का उचित निस्तारण किया जाना, हानिकारक रसायनों पर रोक लगाकर उनका अन्य विकल्प तलाशना, स्वच्छ जल का आवश्यकतानुसार उचित प्रयोग किया जाना अत्यंत जरूरी है ! साथ ही वर्षा के साफ़ जल का पर्याप्त संग्रह, सघन वृक्षारोपण और प्लास्टिक आदि हानिकारक पदार्थो पर तुरंत प्रभावी ढंग से लगाईं गयी रोक इस दिशा में कारगर सिद्ध होंगी अन्यथा पीने योग्य जल को लेकर विश्ब भर में यही स्थिती बनी रहेगी और इस दिशा में प्रयास नहीं किया गया तो यह लगातार और विकराल होती जाएगी.चेतवानी (Warning)
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